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कुछ तो शायद उन्हें भी हुआ है / रंजना वर्मा

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कुछ तो शायद उन्हें भी हुआ है।
रोग क्या इश्क का लग गया है॥

है नहीं कोई उपचार इसका
वस्ल ही सिर्फ़ इसकी दवा है॥

तोड़ ले तू सितम चाहे जितने
माँ के आंचल में केवल दुआ है॥

हर किसी को सहज ही मिले जो
रूप में माँ के रहता ख़ुदा है॥

आरजू तो तेरे वस्ल की थी
हो गया तो क्यूँ हमसे जुदा है॥

औरतों ने हमेशा जहाँ में
रस्म के नाम क्या-क्या सहा है॥

साथ रहता ज़माना खुशी में
दर्द हरदम अकेला रहा है॥