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कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी / परवीन शाकिर

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कुछ तो हवा सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ-साथ होता रहा मलाल भी

बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
चाँद भी ऐन चैत का उस पे तिरा जमाल भी

सबसे नज़र बचा के वो मुझको कुछ ऐसे देखता
एक दफा तो रुक गई गर्दिश ए माह ओ साल भी

दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तराश के देख लें
शीशागिरान-ए-शहर के हाथ का ये कमाल भी

उसको न पा सके थे जब दिल का अजीब हाथ था
अब जो पलट के देखिये बात थी कुछ मुहाल भी