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कुछ तो हूँ और कुछ नहीं हूँ मैं / जगदीश तपिश

कुछ तो हूँ और कुछ नहीं हूँ मैं
चंद लम्हों की रुत नहीं हूँ मैं

मुझको सज़दा करो न पूजो तुम
संगमरमर का बुत नहीं हूँ मैं

मेरे नीचे है अंधेरों का वजूद
शाम से पहले कुछ नहीं हूँ मैं

यूँ न तेवर बदल के देख मुझे
ज़िन्दगी तेरा हक़ नहीं हूँ मैं

बेख़ुदी में तपिश ये आलम है
वो ख़ुदा है तो ख़ुद नहीं हूँ मैं