कुछ तो हूँ और कुछ नहीं हूँ मैं
चंद लम्हों की रुत नहीं हूँ मैं
मुझको सज़दा करो न पूजो तुम
संगमरमर का बुत नहीं हूँ मैं
मेरे नीचे है अंधेरों का वजूद
शाम से पहले कुछ नहीं हूँ मैं
यूँ न तेवर बदल के देख मुझे
ज़िन्दगी तेरा हक़ नहीं हूँ मैं
बेख़ुदी में तपिश ये आलम है
वो ख़ुदा है तो ख़ुद नहीं हूँ मैं