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कुछ दूर से देखें / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

कुछ दूर से देखें, कि बहुत ही क़रीब से!
मैं आपको मिलूँगा लटकता सलीब से!

दुनिया को बहुत प्यार रहा है अदीब से!
यानी नसीब वाले एक बदनसीब से!

मेरी नज़र इलाज के काबिल नहीं रही ,
दिखते हैं बादशाह भी मुझको ग़रीब से!

मैं खुशबुओं के साथ कहाँ से कहाँ गया,
नापो न मेरे दायरे यारो! जरीब से!

'सिन्दूर' क्यों नसीब पर ख़्वाबों को छोड़ दे,
क़ुव्वत है बाज़ुओं में अभी तो नसीब से!