भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ देर आंसुओ रहो मेहमान अभी और / राज़िक़ अंसारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ देर आंसुओं रहो मेहमान अभी और
पढ़ना है मुझे " मीर " का दीवान अभी और

जा तो रहा है छोड़ के दिल तोड़ के लेकिन
कुछ रोज़ मुझे जान अभी पहचान अभी और

क्यों तीरगी से जंग में हम टेक दें घुटने
रस्ते में हैं रोशन कई इमकान अभी और

मुम्किन है लौट आएं बहारों के ज़माने
रहने दो मेरी मेज़ पे गुलदान अभी और

मत लेना ख़सारे का अभी जायज़ा " राज़िक़ "
होना है बहुत इश्क़ में नुक़सान अभी और