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कुछ देर रही हलचल मुझ प्यास से पानी में / शहरयार
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कुछ देर रही हलचल मुझ प्यास से पानी में
फिर थी वही जौलानी दरिया की रवानी में
ये हिज्र की रातें भी होती हैं अजब रातें
दिन फूल खिले देखे कल रात की रानी में
आंखें वहीं ठहरी हैं पहले जहां ठहरी थीं
वैसा ही हसीं है तू था जैसा जवानी में
मीठी है कि कड़वी है सच्चाई बस इतनज है
रहता है रिहाई तक इस क़ैदे-मकानी में।