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कुछ देर / व्योमेश शुक्ल
Kavita Kosh से
तुम्हारी दाहिनी भौं से ज़रा ऊपर
जैसे किसी चोट का लाल निशान था
तुम सो रही थी
और वो निशान ख़ुद से जुडे सभी सवालों के साथ
मेरी नींद में
मेरे जागरण की नींद में
चला आया है
इसे तकलीफ या ऐसा ही कुछ कह पाने से पहले
रोज़ की तरह
सुबह हो जाती है
सुबह हुई तो वह निशान वहाँ नहीं था
वह वहाँ था जहाँ उसे होना था
लोगों ने बताया: तुम्हारे दाहिने हाथ में काले रंग की जो चूड़ी है
उसी का दाग रहा होगा
या कहीं ठोकर लग गई हो हल्की
या मच्छर ने काट लिया हो
और ऐसे दागों का क्या है; हैं, हैं, नहीं हैं, नहीं हैं
और ये सब होता रहता है
यों, वो ज़रा सा लाल रंग
कहीं किसी और रंग में घुल गया है
हालाँकि तब से कहीं पहुँचने में मुझे कुछ देर हो जा रही है