कुछ दोहे / रवीन्द्र प्रभात
1.
निर्वाचन के घाट पे, भई नेतन की भीड़ !
जनता बन गई द्रौपदी, खींच रहे हैं चीर !!
2.
गदहा गाए भैरवी, तनिक न लागै लाज !
शाकाहारी बन गए, गिद्ध-गोमायु-बाज !!
3.
पक्ष और प्रतिपक्ष में, ढूँढ़ रहे सब खोंच !
पाँच बरस तक चोंचले, ख़ूब लड़ाए चोंच !!
4.
हरियाली की बात करे, सूख गए जब पात !
जनता भोली देखती, नेता का उत्पात !!
5.
कृष्ण-दुःशासन साथ हैं, अर्जुन बेपरवाह !
कोई मसीहा आए, दिखलाए अब राह !!
6.
तन पे साँकल फागुनी, नेह लुटाए मीत !
पके आम-सा मन हुआ, रची पान-सी प्रीत !!
7.
महुआ पीकर मस्त है, रंग भरी मुस्कान !
झूम रहे हैं आँगने, बूढे और जवान !!
8.
धूप चढ़ी आकाश में, मन में ले उपहास !
पानी-पानी कर गया बासंती एहसास !!
9.
चूनर-चूनर टाँकती, हिला-हिला के पाँव !
शहर से चलकर आया, जबसे साजन गाँव !!
10.
मंगलमय हो आपको, होली का त्यौहार !
रसभीनी शुभकामना, मेरी बारम्बार !!
11.
कान्हा-कान्हा ढूँढ़ती, ताक-झाँक के आज ।
कौन बचाएगा यहाँ, पांचाली की लाज ।।
12.
गिद्ध-गोमायु-बाज में, राम-नाम की होड़ ।
मरघट-मरघट घूमते, तोते आदमखोर ।।
13.
कातिल-कातिल ढूंढ के, मुद्दई करे गुहार ।
मोल-तोल में व्यस्त हैं, मुंसिफ औ’ सरकार ।।
14.
राग-भैरवी छेड़ गए, कैसी बे-आवाज़ ।
उछल-कूद कर मंच मिला, बन बैठे कविराज ।।
15.
घर-घर बाँचे शायरी, शायर-संत-फ़कीर ।
भारत देश महान है, सब तुलसी, सब मीर ।।
16.
राजनीति के आँगने, परेशान भगवान ।
नेत-धरम सब छोड़ के, पंडित भयो महान ।।
17.
हँस-हँस कहती धूप से, परबत-पीर-प्रमाद ।
बहकी-बहकी आँच दे, पिघला दे अवसाद ।।
18.
यौवन की दहलीज पे, गणिका बाँचे काम ।
बगूला-गिद्ध-गोमायु सब, साथ बिताएँ शाम ।।
19.
मह-मह करती चाँदनी, सूख गए जब पात ।
रात नुमाईश कर गई, कैसे हँसे प्रभात ।।
20.
नदी पियासी देख के, ना बरसे अब मेह ।
धड़कन की अनुगूँज से, बादल बना विदेह ।।