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कुछ नन्ही कविताएँ / गुलशन मधुर
Kavita Kosh से
हरकारे शब्द
मन की पाती लेकर
कविता की वर्दी में आते हैं
हरकारे शब्द
बर्फ़ और धूप
बर्फ़ पर धूप
चांदी के पिघल रहे हैं पत्थर
रूपा हुआ सोनरूप
पिघल रही है चांदी
सुनकर सूरज का सुखद प्रेमगीत
धीमा, मद्धम-मद्धम
दिनचर्या
नींद से जगना
बहुत सा थकना, तकना
एक सपने की राह
मेहमान
ढला दिन का उजास
गुमसुम उदास सी ख़ामोशी
बैठ गई पास