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कुछ नहीं मुश्किल रवायत को निभाना / सूरज राय 'सूरज'
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कुछ नहीं मुश्किल रवायत को निभाना।
एक मुठ्ठी ख़ाक़ तुम भी डाल जाना॥
ओढ़ना आकाश को धरती बिछाना।
ये है हम खानाबदोशों का ठिकाना॥
कैंचियों से दोस्ताना बढ़ रहा है
ऐ परिंदे बागबां से पर छुपाना॥
चूर हो जाते है कांधे पर्वतों के
है बहुत मुश्किल कोई एहसां उठाना॥
जिस्म से परछांई लम्बी हो रही है
दांव है ये रौशनी का कायराना॥
वक़्ते-रुख़्सत सैंकड़ों आँखों में मोती
जा रहा है साथ मेरे ये खज़ाना॥
नाम बेटे का रखा मुफ़लिस ने "सूरज"
कुछ नहीं ये रौशनी का है बयाना॥