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कुछ नहीं है / केदारनाथ अग्रवाल
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सब कुछ है
मगर कुछ नहीं है
जहाँ आदमी नहीं है
आदमी के भीतर
आदमी के बाहर
रचनाकाल: २६-०१-१९६७