कुछ नाम करऽ / मणिशंकर प्रसाद
जब जनम लेला हऽ दुनिया में
तो जिनगी में कुछ नाम करऽ,
जीये के खातिर ही लेकिंन
ई जिनगी के सम्मान करऽ ।
हो धन-दौलत के ढेर मगर
कुछ काम नञ आइलो मरला पर,
धरले सब अँइसी रह जइतो
कुछ शेष नञ बचतों गहला पर;
मरला पर याद करे खातिर
कुछ जिनगी में सतकाम करऽ ।
ई बड़गो-बड़गो कुरसी पर
तो बैठ के केतना सुख पइबा ?
जितना धन वैभव बढ़ जइतो
ओतना ही मन में दुःख पाइबा;
जिनगी में सच्चा सुख खातिर
दोसरा ले जिनगी दान करऽ ।
जिअऽ हत लोग बहुत लेकिन
केतना गुणवान कहाबऽ हथ ?
केतना के नाम अमर रहतो
केतना जस मान कमाबऽ हथ ?
जन-जन प्रीत बढाबऽ तो
नञ मन में कुछ अभिमान करऽ ।
ई दुनिया भूल-भुलैया हो
एक भँवर बीच में नैया हो,
सबके मालिक हो एक प्रभु
सबके बस उहे खेबईया हो;
ई जिनगी सत्त-धरम खातिर
अब एकरा तीरथ-धाम करऽ ।