भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ नै बोलै छौं / कस्तूरी झा 'कोकिल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टुकुर-टुकुर छौं हमरा,
तोरा तस्वीरें।
पूछला पर कुछ नैं बोलै छौं
तोरा तस्वीरें
जों रूसली छॅ तेॅ मानी जा
बीतलै आधा साल।
बड़ा कश्ट छै ई जीवन सें
आगाँ कोंन हवाल?
उठतें बैठतें डाँड़ा दरद सें
मोॅन उछीनों लागै छै।
केन्हों केॅ बजरंगबली लग
जाय केॅ शांति पाबै छै।
एक हाथ डॉड़ा पकडै़ छी
दोसरा में लाठी!
कछुवा चाल चली के प्रिय है
आबै छै काठी।
कत्ते दबाय दरद केॅ खैबै
किडनी खाय जैतै।
की करियै तोंहीं अब बोलॅ
जीवन हाय लेतै।
साँप छु छुन्दर के हालत छै
बड़ा समस्या भारी।
सिर्फ दबाय तोरहै जिम्मा छै,
बम भोले त्रिपुरारी।

17/07/015 अपराहन तीन बजे