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कुछ न कुछ तो उस बशर में हौसला है / प्राण शर्मा
Kavita Kosh से
कौन नंगा खुद को करना चाहता है
किसने अपने बारे में सच-सच कहा है
जिसने अपने बारे में कुछ भी कहा है
कुछ न कुछ तो उस बशर में हौसला है
सोचता हूँ मैं हमेशा, आदमी क्यों
आदमी के सामने झुककर खडा है
क्यों न मैं नित ही करूँ तारीफ़ उसकी
इल्म में वो आदमी मुझसे बड़ा है
सोचता हूँ कल भी क्या उतना बहेगा
खून जितना दुनिया में अब तक बहा है
दूसरे के मन में कोई बात क्या है
हर कोई ये जानना क्यों चाहता है
रख नहीं पाया कभी खुश जिंदगी को
मुझको इसका “प्राण” पछतावा रहा है