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कुछ पड़ गया है आँख में / महेश वर्मा

क्या पड़ गया रे आँख में?
जलती रहती आँख निकलते रहते आँसू
आग-पानी साथ-साथ का कितना सुंदर बिंब
कुछ पड़ गया है आँख में।
कुछ तो भी उड़ता ही रहता हवा में,
राख या रेत क्या मालूम
मलते-मलते लाल हो जाती किरकिराती आँख -
डरता नहीं फिर भी एक कुत्ता भी -
आँख में कुछ पड़ गया है रे!
कुछ तो बढ़ा है इन दिनों हवा में
धुआँ या धूल या क्या पता कोई रसायन
कौन मिलाता रहता है रे ये सब?
जलती रहती आँख
निकलते जाते आँसू
मलते रहते आँख
देता भी नहीं कुछ साफ दिखाई
राह चलते पड़ जाता कुछ अक्सर आँख में।