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कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में / अकरम नक़्क़ाश
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कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में
लेकिन कोई सुराग़ नहीं है गिरफ़्त में
कुछ दख़्ल इख़्तियार को हो बूद-ओ-हस्त में
सर कर लूँ ये जहान-ए-आलम एक जस्त में
अब वादी-ए-बदन में कोई बोलता नहीं
सुनता हूँ आप अपनी सदा बाज़-गश्त में
रूख़ है मिरे सफ़र का अलग तेरी सम्त और
इक सू-ए-मुर्ग़-ज़ार चले एक दश्त में
किस शाह का गुज़र है कि मफ़्लूज जिस्म-ओ-जाँ
जी जान से जुटे हुए हैं बंद-ओ-बस्त में
ये पूछ आ के कौन नसीबों जिया है दिल
मत देख ये कि कौन सितारा है बख़्त में
किस सोज़ की कसक है निगाहों के आस-पास
किस ख़्वाब की शिकस्त उमड आई है तश्त में