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कुछ फूल रात में ही खिलते हैं / शिरीष कुमार मौर्य
Kavita Kosh से
कुछ बिम्ब बहुत रोशनी में
अपनी चमक खो देते हैं
कुछ प्रतीक इतिहास में झूट हो जाते हैं
वर्तमान में अनाचारियों के काम आते है
कुछ मिथक सड़ जाते हैं पुराकथाओं में
नए प्रसंगों में उनकी दुर्गंध आती है
कुछ भाषा परिनिष्ठण में दम तोड़ देती है
कविता के मैदान में नुचे हुए मिलते हैं कुछ पंख
सारे ही सुख दु:ख से परिभाषित होते हैं
गो परिभाषा करना कवि का काम नहीं है
घुप्प अन्धेरे में
माचिस की तीली जला
वह काग़ज़ पर कुछ शब्द लिखता है
यह समूची सृष्टि पर छाया एक अन्धेरा है
और सब जानते हैं
कि कुछ फूल सिर्फ़ रात ही में खिलते हैं