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कुछ फूल सरे सहने चमन खिल तो रहे हैं / मख़दूम मोहिउद्दीन

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कुछ फूल सरे सहने चमन खिल तो रहे हैं
इक नूर सरे तूर नज़र आ तो रहा है ।

सदियों से सदफ़<ref>सीपी</ref> बन्द गुहरबन्द<ref>मोती</ref> नज़रबन्द
वो जानेसदफ़ जाने गुहर आ तो रहा है ।

लब सर्द, नज़र सर्द,बदन सर्द है, दिल सर्द
वो जाने मसीहा नफ़साँ आ तो रहा है ।

आँखों में हया लब पे हँसी आ तो रही है
आग़ोश-ए-सहर में कोई शर्मा तो रहा है ।

शब्दार्थ
<references/>