भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ बादल कुछ चाँद से प्यारे प्यारे लोग / राग़िब अख़्तर
Kavita Kosh से
कुछ बादल कुछ चाँद से प्यारे प्यारे लोग
डूब गए जितने थे आँख के तारे लोग
कुछ पाने कुछ खो देने का धोका है
शहर में जो फिरतें हैं मारे मारे लोग
शहर-ए-बदन बस रैन-बसेरा जैसा है
मंज़िल पर कब रूकते हैं बंजारे लोग
रोज़ तमाशा मेरे डूबते रहने का
देख रहे हैं बैठे ख़्वाब किनारे लोग