कुछ भी कहना खतरे से खाली नहीं / प्रांजल धर
(इस कविता पर प्रांजल धर को 2012 का भारत भूषण अग्रवाल सम्मान प्राप्त हुआ।)
इतना तो कहा ही जा सकता है कि कुछ भी कहना
खतरे से खाली नहीं रहा अब
इसलिए उतना ही देखो, जितना दिखाई दे पहली बार में,
हर दूसरी कोशिश आत्महत्या को सुनहरा आमंत्रण है
और आत्महत्या कितना बड़ा पाप है, यह सबको नहीं पता,
कुछ बुनकर या विदर्भवासी इसका कुछ-कुछ अर्थ
टूटे-फूटे शब्दों में जरूर बता सकते हैं शायद
मतदान के अधिकार और राजनीतिक लोकतंत्र के संकरे
तंग गलियारों से गुजरकर स्वतंत्रता की देवी
आज माफियाओं के सिरहाने बैठ गयी है स्थिरचित्त,
न्याय की देवी तो बहुत पहले से विवश है
आँखों पर गहरे एक रंग की पट्टी को बाँधकर बुरी तरह...
बहरहाल दुनिया के बड़े काम आज अनुमानों पर चलते हैं,
- क्रिकेट की मैच-फिक्सिंग हो या शेयर बाजार के सटोरिये
अनुमान निश्चयात्मकता के ठोस दर्शन से हीन होता है
इसीलिए आपने जो सुना, संभव है वह बोला ही न गया हो
और आप जो बोलते हैं, उसके सुने जाने की उम्मीद बहुत कम है...
सुरक्षित संवाद वही हैं जो द्विअर्थी हों ताकि
बाद में आपसे कहा जा सके कि मेरा तो मतलब यह था ही नहीं
भ्रांति और भ्रम के बीच संदेह की संकरी लकीरें रेंगती हैं
इसीलिए
सिर्फ़ इतना ही कहा जा सकता है कि कुछ भी कहना
खतरे से खाली नहीं रहा अब!