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कुछ भी तू कर ले यार पैसे से / हरि फ़ैज़ाबादी
Kavita Kosh से
कुछ भी तू कर ले यार पैसे से
गै़र मुमकिन है प्यार पैसे से
फिर गया है दिमाग़ क्या तेरा
चाहता है बहार पैसे से
शुक्र है उसकी लाखों की दुनिया
बच गयी मेरे चार पैसे से
जुर्म मिट्टी का क्यों कहा जाये
बिक गया जब कुम्हार पैसे से
कौन समझाये इन ग़रीबों को
बोलता है अनार पैसे से
मत करो मेरी उनसे तुलना जो
सिर्फ़ हैं शानदार पैसे से
साफ़ रखना हिसाब रिश्तों में
वरना होगी दरार पैसे से