भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं!
उर में छलकता प्यार था,
दृग में भरा उपहार था,
तुम क्यों ड़रे, था चाहता मैं तो प्रणय-प्रतिकार मे-
कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं!
मुझको गये तुम छोड़कर,
सब स्वप्न मेरा तोड़कर,
अब फाड़ आँखें देखता अपना वृहद संसार में-
कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं!
कुछ मौन आँसू में गला,
कुछ मूक श्वासों में ढ़ला,
कुछ फाड़कर निकला गला,
पर, हाय, हो पाई कमी मेरे हृदय के भार में-
कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं!