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कुछ भी नहीं हुआ-सा लेकर लौटें हम / सांवर दइया
Kavita Kosh से
कुछ भी नहीं हुआ-सा लेकर लौटें हम।
बस, खोखली दिलासा लेकर लौटें हम।
उलझे मुद्दों पर आयोजित परिचर्चाएं,
कुछ और घना कुहासा लेकर लौटें हम।
खुली हवा और खुशबू तलाशने चले,
भीतर कड़ुआ धुआं-सा लेकर लौटें हम।
उमड़े-गरजे तो बहुत बादल, बरसे कम,
मन भीतर खाली कुआं-सा लेकर लौटें हम।
कुछ इस तरह छुआ हर पहलु आपने,
हर पहलु अनछुआ-सा लेकर लौटें हम।