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कुछ मिश्री सा घोलो तो / छाया त्रिपाठी ओझा
Kavita Kosh से
नहीं सामने,पर सपनों में
कभी -कभी कुछ बोलो तो
कहो हृदय की मीठी बातें
कुछ मिश्री सा घोलो तो
जीवन का हर पल तुमसे है
आज और प्रिय कल तुमसे है
बाधाओं से कैसा डर जब
अंतस का हर बल तुमसे है
मेरा है सर्वस्व तुम्हारा
मुझको कभी टटोलो तो
कहो हृदय की मीठी बातें
कुछ मिश्री सा घोलो तो
खुशी पकड़ कर द्वारे ला दूं
या कह दो तुम तारे ला दूं
जितने भी हैं नील गगन में
तोड़ -तोड़ मैं सारे ला दूं
एक तुम्हीं तो बस मेरे हो
मुझे कभी तुम तोलो तो
कहो हृदय की मीठी बातें
कुछ मिश्री सा घोलो तो
मुझे पता क्या दुनियादारी
गढूं बैठकर मूर्ति तुम्हारी
दूर - दूर तक महके बेला
नयनों में है चढ़ी खुमारी
नींद मुझे भी आ जाती पर
सुधियों संग तुम डोलो तो
कहो हृदय की मीठी बातें
कुछ मिश्री सा घोलो तो