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कुछ मीठा कुछ खारापन है / ओंकार सिंह विवेक
Kavita Kosh से
कुछ मीठा कुछ खारापन है,
क्या-क्या स्वाद लिए जीवन है।
कैसे आँख मिलाकर बोले,
साफ़ नहीं जब उसका मन है।
शिकवे भी उनसे ही होंगे,
जिनसे थोड़ा अपनापन है।
धन-ही-धन है इक तबक़े पर,
इक तबक़ा बेहद निर्धन है।
सूखा है तो बाढ़ कहीं पर,
बरसा यह कैसा सावन है।
कल निश्चित ही काम बनेंगे,
आज भले ही कुछ अड़चन है।
दिल का है वो साफ़,भले ही,
लहजे में कुछ कड़वापन है।