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कुछ यों / हेमन्त शेष

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कुछ यों

तोड़ता हूं -
जीवन में सिर नहीं, कविता में शिल्प!
फोड़ सकता हूं पहला, दूसरे के लिए
(कि) हत्यारा नहीं
हूं तो तथाकथित कवि ही