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कुछ लिख जाओ / राजेश चड्ढ़ा
Kavita Kosh से
तुम -
इस वक़्त भी
मौजूद हो ,
सोच के
काग़ज़ पर ,
लफ़्ज़ों की शक्ल में ,
ये तो हद है...!
कभी-
बिना सोचे भी
उतर जाओ ,
बहुत जी लिया
ख़यालों में ,
अब ज़मीनी
हक़ीक़त पर आओ...!
सूरज भर
छिपते फिरे हो ,
अब चांद भर
दिख जाओ...!
कुछ भी
ना कर पाओ....
तो...
चलो.....
कुछ लिख जाओ......