कुछ लोग नई आबो-हवा मांग रहे हैं / कांतिमोहन 'सोज़'
कुछ लोग नयी आबो-हवा माँग रहे हैं ।
शातिर<ref>चालाक</ref> हैं ज़रा सोच तो क्या मांग रहे हैं ।।
बेज़ार हैं मरहम से मसीहा से शिफ़ा से
अब ज़ख्म सितमगर से दवा माँग रहे हैं ।
यूँ तो तेरी तंज़ीम<ref>व्यवस्था</ref> में हर शै है मुयस्सर<ref>उपलब्ध</ref>
कुछ सरफिरे जीने की दुआ माँग रहे हैं ।
हो ख़ैर सख़ावत<ref>दानशीलता</ref> की तेरी अहले-हवस<ref>दूसरों के माल पर नज़र रखनेवाले</ref> भी
बेख़ौफ़ अज़ाबों<ref>अपराध, पाप</ref> का सिला<ref>इनाम</ref> माँग रहे हैं ।
दहशत का ये आलम है भले लोग अभी से
नाकर्दा<ref>अनकिए</ref> गुनाहों की सज़ा माँग रहे हैं ।
बदख़ू<ref>बुरी आदतवाले</ref> हैं सदाक़त<ref>सच्चाई</ref> की तलब जो करें तुझसे
सरकश हैं जो तक्मीले-वफ़ा<ref>वादा निभाने की माँग</ref> माँग रहे हैं ।
तौहीन सरासर है अगर तेरे फ़िदाई<ref>चाहनेवाले</ref>
फ़िरऔन<ref>कंस जैसा अत्याचारी शासक</ref> से जीने की अदा माँग रहे हैं ।।