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कुछ लोग सपने दिखाते बहुत हैं / अवधेश्वर प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
कुछ लोग सपने दिखाते बहुत हैं।
वो हाथ दोनों बढ़ाते बहुत हैं।।
गर साथ देने कहोगे उसे तो।
मुंह मोड़कर वह पराते बहुत हैं।।
जो साथ रहते दिन रात मेरे।
नित शाम होते डराते बहुत हैं।।
तकरार करना मुनासिब नहीं है।
इंकार पर वह रिझाते बहुत हैं।।
अब क्या करूं कुछ बताएँ तो जानूं।
कर प्यार मुझको सताते बहुत हैं।।
गर भूल जायें कहीं राह में हम।
वो पास आकर बुलाते बहुत हैं।।
जब इस बहर पर सुनाऊँ ग़ज़ल तो।
नज़रें झुका मुस्कुराते बहुत हैं।।
जब नींद में सो गये गर कहीं वो।
वो यह ग़ज़ल गुन गुनाते बहुत हैं।।