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कुछ शिकवे शिकायतें भी / अशेष श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कुछ शिकवे शिकायतें भी ज़रूरी हैं
रिश्तों में जीवंतता के लिये
बहुत औपचारिकताओं में देखा है
अक्सर रिश्तों को मरते हुए।
कुछ विफलतायें भी ज़रूरी हैं
इंसान की ज़िंदगी के लिये
सफलताओं में बहुत देखा है
इंसान को मग़रुर होते हुए।
कुछ धोखे खाना भी ज़रूरी है
जिंदगी में सबक के लिये
बहुत भरोसों में देखा है
इंसान को यहाँ लुटते हुए।
कुछ झूठी बातें भी ज़रूरी हैं
सम्बंधों को निभाने के लिये
बहुत सच्चाइयों में देखा है
सम्बन्धों को बिगड़ते हुए।
धन पद यश का ह्वास भी ज़रूरी है
कुछ भगवान की निकटता के लिये
बहुत वैभव में अकसर देखा है
इंसान को भगवान बनते हुए।