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कुछ शिशु कविताएँ / दीनदयाल शर्मा

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1.

जाड़े में मन भाती धूप
हमको खूब सुहाती धूप
दरवाज़े तक आ जाती है
घर में क्यों नहीं आती धूप।

2.

बस्ता भारी
मन है भारी
कर दो बस्ता हल्का
मन हो जाये फुल्का।

3.

मेरी मैडम
मेरे सर जी
हमें पढाते
अपनी मरजी।

4.

सारे दिन क्यों पढ़ें पुस्तकें
हम भी खेलें कोई खेल
बोझा बस्ते का कम कर दो
घर-स्कूल बने हैं जेल।