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कुछ संजीदा औरतें / पूनम भार्गव 'ज़ाकिर'

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देखतीं हैं सहज भाव से
सुख की कामना को
कहलाए जाने से बदचलन
नहीं होतीं आहत
उफ़ान की तरह
विद्रोह बैठ जाता है
पानी के कुछ छींटों से

उधारी पर है बरसों से
उनकी जीवित आस
चुकाती रहतीं हैं ब्याज
देह के चुकने तक
पर वह
पुरुष देह को
शिथिल अवस्था तक
ले जाने की मंशा से
देना नहीं चूकतीं निमंत्रण
झोलियाँ भर लेना चाहतीं हैं
धन-धान से
प्रेम तो वैसे भी
अचरज ही है उनके लिए

बुरी होती है परछाई
मुर्दा खुशमिजाज औरतों की
अचंभा हुआ था जानकर
जब व्यस्ततम बाज़ार में
लगभग घसीटते हुए
खींचकर माँ ने
कहा था मत देखो उनकी तरफ़
डायन हैं
बंधक बना लेतीं हैं
बच्चों के पिता को
हतप्रभ से उनके चेहरों को
याद करके सोचते रहे
कैसे हो सकतीं हैं?
सुंदर औरतें इतनी बुरी!

समझ आई देर से यह बात
कि बुरी नहीं हैं
बुरी कहलाई जाने वाली औरतें
बस
उन औरतों के पेट की आग
बहुत बुरी बन गई है
जो
पेट के निचले हिस्से से ही
मिटती है

मैं दावे से कहती हूँ
वो बहुत संजीदा औरतें हैं
व्यापार के बावजूद भी
कलंकित देह में
मौजूद
कौमार्य को
सहेज कर रखती हैं!