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कुछ सपने देखे हैं / मधु प्रधान
Kavita Kosh से
हमने कुछ सपने देखे हैं
भरी बखारी ,धान कूटती
मन ही मन कुछ गाती धनिया
चंचल लोल किलोलें करते
बछड़ों को दुलराती मुनिया
गली - गली में धूम मचाते
टेसू के पुतले देखे हैं।
खेत जोतते हीरा - मोती
घर में दही बिलोती मैया
दूध सने मुख ,कर में माखन
द्वार -द्वार पर कृष्ण कन्हैया
लिपे-पुते माटी के घर में
तुलसी के बिरवे देखे हैं।
होरी के आँगन में फागुन
रूपा के माथे पर रोली
चौक अँचरती झुनिया का सुख
नन्हे की तुतली सी बोली
बिना महाजन का मुँह जोहे
काज सभी सरते देखे हैं
हमने कुछ सपने देखे हैं