चट्टानों को तोड़कर
कंदुक-सा उछलता आता है
कोई भाव
और शब्द की पोशाक पहनकर
हमारे होने का हिस्सा होता है
या फिर
समुद्र-तल से उठती
कोई तेज़ तरंग
अपना सफर तय करती
टकराती है तट से
और कुछ सपनीले मोती छोड़
जाती है-
अपनी दमक बिखेरते मोती
हमारे कंधों पर सवार हो जाते
हैं-
या फिर दूर कंदराओं से उठती गेरुआ गंध
समा जाती है नासिका-रंध्रों में
और अंदर ही अंदर
कहीं खनक उठता है कुछ
शायद शब्द!
शब्द ब्रह्म है
और ब्रह्म ज्योतिर्पिंड
हिरण्यगर्भा
समझाया है महाजनों ने
पर शब्द नहीं है सिर्फ ब्रह्म
शब्द ब्रह्म होने का पूर्वाभास भी है
और पूर्वाभास
हदों को फलाँग-फलाँग कर
बिखर जाता
चीन्ही अनचीन्ही दिशाओं में
ढोता है शब्द
भविष्य में अतीत!
कुछ समझा आपने?
कुछ देखा आपने
हॉल में अँधेरा हुआ
और मंच आलोकित हो उठा
कुछ सुना आपने
हॉल में ख़ामोशी हुई
सूत्रधार अपना वक्तव्य देने लगा
और ख़ामोशी सन्नाटे में बदल
गई।
कुछ सोचा आपने
कि वक्तव्य देने के लिए
अँधेरा और ख़ामोशी
कितनी ज़रूरी है!
ग़फ़लत में न रहें
सावधान होकर सोचें
आपको अँधरे में डालना
और ख़ामोशी से बाँधना
कितना वाजिब है
कितना मुनासिब।
वक्तव्य दिया सूत्रधार ने
संगीत की लय
और पाँवों की ताल के साथ
वक्तव्य दिया सूत्रधार ने
ग़ौर किया आपने
पूरा नाटक खत्म हो गया
पर सूत्रधार का वक्तव्य नहीं
देखा आपने
प्रकाश ने फिर फैलाकर आपको अपनी बाँहों में भर लिया
आपने भी भर लिया
प्रकाश को
अपनी आत्मा में
चल दिए दर्शक-दीर्घा से बाहर
वक्तव्य को अनुमान चालीसा
बनाकर
ध्यान दिया आपने
कि आपके हाथ
वहीं कहीं तो नहीं रह गए
चिपके हुए कुर्सी के हत्थों से
या पाँव
धँसे हुए फ़र्श में
या आँखें
या सिर
वहीं कहीं हवा में घुले
सूत्राधार के वक्तव्य के साथ।
कुछ समझा आपने?