भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ सिखाती हैं हमें पेड़ों की हिलती पत्तियाँ / उदयप्रताप सिंह
Kavita Kosh से
कुछ सिखाती हैं हमें पेड़ों की हिलती पत्तियाँ
प्यार से आपस में मिलने को मचलती पत्तियाँ
आदमी की क्या है चाहत यह बताता है बसन्त
जितनी झर जाती हैं उतनी ही निकलतीं पत्तियाँ
नीचे बौराई टहनियों की हिफ़ाज़त के लिए
चिलचिलाती धूप में ऊपर की जलती पत्तियाँ
लाल कोंपल, हरा यौवन, पीली पतझर के समीप
उम्र के संग रंग अपना भी बदलती पत्तियाँ
इस लता की कोंपलें थी खाद उसकी हो गई
लड़कियों के पाँव के चिह्नों पे चलती पत्तियाँ
कल यही उपवन का निर्धारित करेगी संविधान
आपके पाँवों के नीचे की कुचलती पत्तियाँ