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कुछ हर-भरे नज़ारे आँखों मे भर कर लाना / शमशाद इलाही अंसारी

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कुछ हरे-भरे नज़ारे आँखों मे भर कर लाना,
धूप में जल चुका हूँ मैं, कोई साया लेकर आना।

इस अजनबी शहर में किसको कहूँ मैं अपना,
मेरे दोस्तों की तस्वीरें तुम साथ लेकर आना।

ये दुनिया जो चल रही है कहीं आगे कहीं पीछे,
नफ़रत हो ख़त्म इससे वो फ़लसफ़ा लेकर आना।

जीने की आरज़ू में, मै हर रोज़ मर रहा हूँ,
मैं मर सकूँ सुकूँ से वो दवा लेकर आना।

सब ने सुना वही जो "शम्स" ने कहा ही नहीं,
जो समझा सके उन्हें तुम वो समझ लेकर आना।


रचनाकाल : 26.11.2002