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कुछ हिस्सा / नरेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
तुम लोकतन्त्र को पूरा लाना चाहते हो न
तो सुनो ...
इस लोकतन्त्र का कुछ हिस्सा
एक-दूसरे से पीठ सटाए
उन चार शेरों के बीच पड़ा है,
जो हर समय, हर जगह मुँह फाड़े नज़र आते हैं
वहाँ जाओगे?
वह जो चक्र है न तुम्हारा
चौबीस तीलियों वाला
कभी अनवरत कर्म का प्रतीक रहा होगा
चौबीस घण्टे
देश प्रगति के पथ पर ...
अब उसे अपनी एसयूवी के पहियों में फिटकर
मनचाही गति देते हैं वे
उनकी मनमर्ज़ियाँ चलेंगी
चक्र केवल आगे नहीं, पीछे भी चलेगा
वे जब चाहें रोकें, जब चलाएँ
तुम्हारे लोकतन्त्र का कुछ हिस्सा
उन पहियों में फँसा पड़ा है
उसे निकालोगे?