भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ है / अशोक वाजपेयी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ है जिसका कोई नाम नहीं,
जो किसी रंगसूची में शामिल नहीं,
जिसे किसी ने देखा नहीं,
जिसे छू नहीं पाया कोई -
मैं उसे पुकारता हूँ :
जैसे मेरी आवाज़
उसका नाम है, रंग है
दृश्य है, स्पर्श है।