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कुण्डलियाँ / तारकेश्वरी तरु 'सुधि'

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धरनी

धरनी नीचे तप रही, ऊपर तीखी धूप।
पेड़ जमीं से लुप्त है, बिगड़ा भू का रूप॥
बिगड़ा भू का रूप, कट रहे हैं नित जंगल।
मौसम का बदलाव, नहीं है दूर अमंगल।
मौसम है प्रतिकूल, वजह मानव की करनी।
देख मनुज के कृत्य, काँपती है यह धरनी॥


कन्या भ्रुण हत्या
 
कन्याएँ शायद बनी, भारत में अभिशाप।
तभी मारते गर्भ में, कन्या धन को आप॥
कन्या धन को आप, काल का ग्रास बनाते।
जिससे चलता वंश, उसी को आप मिटाते।
कल की कन्या आज, बनी है 'सुधि' माताएँ।
होगा क्या परिवार, मार दी यदि कन्याएँ॥
 
राजस्थान

राजस्थानी यह धरा, भारत माँ की शान।
गौरव जहाँ प्रताप का, गोरा का बलिदान॥
गोरा का बलिदान, जहाँ जौहर की ज्वाला।
हुई जहाँ कुर्बान, आन पर कृष्णा बाला।
माता पन्ना धाय, अमर हाडा की रानी।
है वीरों का तीर्थ, धरा यह राजस्थानी॥

कश्मीर

भारत का सिरमौर है, जन्नत है कश्मीर।
आतंकी उत्पात से, झेल रहा पर पीर॥
झेल रहा पर पीर, सकल आतंकी साया।
शालीमार-निसात, झील डल का मुरझाया।
आधा पाक अधीन, सकल फैली है दहशत।
कब तक चुप-लाचार, रहेगा अपना भारत॥

जीवन

जीवन यदि गतिशील हो, भर देता उत्साह।
नदियों में मौजूद ज्यों, नाद, तरंग, प्रवाह॥
नाद, तरंग, प्रवाह, नीर कल-कल कर बहता।
जीवन भी हर रंग, खुशी, गम सारे सहता।
कहती है सुधि आज, करो खुशियों की सींवन।
हर पल चहकें आप, बने सुखमय यह जीवन॥
 
पुष्प

आँखें खोलीं पुष्प ने, आसपास थी धूल।
किरणों ने चुंबन लिया, लगा महकने फूल॥
लगा महकने फूल, झूमता वह इठलाकर।
है खुशबू से चूर, हवा चूमे रह-रहकर।
हुआ स्वयं से मोह, हँसी, फिर कलियाँ बोलीं।
जब मुस्काकर आज, पुष्प ने आँखें खोलीं॥

पालनहारा

पालनहारा है कृषक, लेकिन खुद कृषकाय॥
भूख मिटाकर जगत की, रूखी-सूखी खाय।
रूखी-सूखी खाय, कर्ज़ से दब-दब जाता।
आखिर वह थक हार, मौत को गले लगाता।
सुधि' गर्मी की मार, कभी ओले, जलधारा।
क्यों बेबस, मज़बूर, हमारा पालनहारा॥