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कुण्डलिया-3 / राजपाल सिंह गुलिया

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11.
खेल तमाशा ज़िन्दगी, लेते हैं जो मान,
उनको रिश्तों की कहाँ, होती है पहचान ।
होती है पहचान, गले जब आफत पड़ती,
या फिर आकर भूल, गाल पर थप्पड़ जड़ती ।
कह गुलिया कविराय, करें क्या उनसे आशा,
लेते हैं जो मान, ज़िन्दगी खेल तमाशा ।
12.
बातें सब ये भाग्य की, हैं किस्मत के खेल,
कोई भोगे राज तो, कोई काटे जेल ।
कोई काटे जेल, लिखा कबहूँ ना टलता,
जन से हरदम भाग्य, कदम दो आगे चलता ।
कह गुलिया कविराय, बिछी हैं भाग बिसातें,
शह मिलती या मात, सभी किस्मत की बातें ।
13.
एक अकेले से भला, कहें भीड़ का साथ,
बजा सका ताली कहाँ, कभी अकेला हाथ ।
कभी अकेला हाथ, सदा कर से कर धुलता,
तनहा हो जो मनुज, सदा चिन्ता में घुलता ।
कह गुलिया कविराय, जरूरी जग के मेले,
अहमक या अवधूत, रहें बस एक अकेले ।
14.
मिलते हैं घृतराष्ट्र से, अब भी कुछ इंसान,
ताज मिले औलाद को, जिनके हैं अरमान ।
जिनके हैं अरमान, फिरें वह जुगत भिड़ाते,
पूरी करने साध, जनों का खून बहाते ।
कह गुलिया कविराय, घुटाला कर के खिलते,
करें मुल्क की बात, कहाँ जन ऐसे मिलते ।
15.
सारी बस्ती जब हुई, आतिश में तब्दील,
तब वह अमन बहाल की, करने लगे अपील,
करने लगे अपील, न बिगड़े भाईचारा,
जल को करके कैद, आग को करें इशारा,
कह गुलिया कविराय, समझते सब मक्कारी,
करी अमन की बात, फूँक दी बस्ती सारी ।