भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुण जाणै किण मौत मरां ? / रवि पुरोहित

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चैतरफी
मुरङाण हवा में
छेवट कद लग मौन धरां ?
समझायो धमकायो मन नैं
घणौ सांवट्यो घायल तन नैं,
दूजां री लेलङ्यां में ई
बिरथ गमायो म्हैं जीवन नैं ।
जीवन रो जद
जीव कळीजै
किण विध जीवन मान करां ?
भूख करावै पाप घणां
बिण विध जीवन राग भणां,
रातङली कट ज्यावै आंख्यां
सुख थोङा अर दुख घणां ।
धमाचैकङी चमगूंगां री
कुण जाणै किण मौत मरां ?
आंधा आखर
मेळ-जोळ रा
सबद अणमणां बंतळ-बोळ रा,
मांदो जीवन
जीव गळगळा
रंगरूट
घणां मोळ-खोळ रा ।
राज
हवा में डांगां रो
सपनैं कियां उङान भरां ?