भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुण बांचे पाती, बिना प्रभु कुण बांचे पाती / मीराबाई
Kavita Kosh से
राग गूजरी
कुण बांचे पाती, बिना प्रभु कुण बांचे पाती।
कागद ले ऊधोजी आयो, कहां रह्या साथी।
आवत जावत पांव घिस्या रे (वाला) अंखिया भई राती॥
कागद ले राधा वांचण बैठी, (वाला) भर आई छाती।
नैण नीरज में अम्ब बहे रे (बाला) गंगा बहि जाती॥
पाना ज्यूं पीली पड़ी रे (वाला) धान नहीं खाती।
हरि बिन जिवणो यूं जलै रे (वाला) ज्यूं दीपक संग बाती॥
मने भरोसो रामको रे (वाला) डूब तिर्यो हाथी।
दासि मीरा लाल गिरधर, सांकडारो साथी॥
शब्दार्थ :- कुण =कौन। पाती = चिट्ठी। साथी =सखा, श्रीकृष्ण से आशय है। घिस्या = घिस गये। राती = रोते-रोते लाल हो गई। अम्ब = पानी। म्हने =मुझे सांकडारो =संकट में अपने भक्तों का सहायक।