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कुत्तानामा (दोहे) / जय चक्रवर्ती
Kavita Kosh से
क़दम-क़दम थीं झिड़कियाँ, हिकारतें, अपमान ।
टुकड़े के पीछे मगर, कोसों दौड़ा श्वान ।।
कुत्तागीरी का मिला , कुत्ते को ईनाम ।
कुर्सी, बँगला, गाड़ियाँ, पद, पैसा, आराम ।।
टुकड़ों पर पलते रहे, कुत्ते के जज़्बात ।
कुत्ता कैसे बोलता, अपने दिल की बात !!
कुत्तों ने धारण किया, जब जब कुत्ताधर्म ।
जाति धर्म की तब हुई, क्रूर सियासत गर्म ।।
पग-पग 'कुत्ताचार' है , हर कुत्ते का मन्त्र ।
लोकतन्त्र पर हो गया , हावी कुत्तातन्त्र ।।