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कुत्ते की पूँछ / राधावल्लभ त्रिपाठी

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वह सदा से ऎसी ही रही है
टेढ़ी और घुमावदार
बरसों तक रखे रहो भले उसे
सीधे किसी पाईप के भीतर भी
करते रहो स्नेह की मालिश चाहे बरसों
कुत्ते की पूँछ
हो न सकेगी सीधी

सामने से हाथ में लाठी लिए आ जाए जो कोई
तो वह नीचे झुककर
क्यांग की मिमियाहट के साथ
घुस जाएगी देहार्द्ध के भीतर
सामने प्रतिद्वंद्वी हो
तो उठकर पताका की तरह तन जाएगी
विजय की गुर्राहट में कुत्ते की पूँछ

अन्न के कण तिनके की तरह फेंकता है जो मालिक सामने
उसे पाकर सम्मुख
बिछ जाएगी उसके पाँवों में
पूरी श्रद्धा, भक्ति, दीनता और कृपणता में भरी
धरती पर हो जाएगी लोटपोट
कुत्ते की पूँछ।