कुत्ते भौंकने लगते
वह डर जाती
पत्थर उठा लेती
गालियाँ बड़बड़ाती
पत्थर चलाती
पर, कुत्ते तो कुत्ते होते हैं।
आखिरकार
डरी, सहमी वह दौड़ती
और किसी के
गेट से चिपक
आवाज़ लगाती
“बाबूजी, कुत्ते”
कोई आता
कुत्तों को भगाता
कोई
उसे दो रोटी खिला देता
तो कोई डाँट कर भगा देता।
वह पागल थी
शायद कुछ दिन पहले ही
शहर में आई थी।
आज अखबार देखा
तो चौंक गया-
“पागल लड़की का रात
सामूहिक बलात्कार
लड़की की हालत नाजुक
छह फरार, दो गिरफ़तार”
वह पागल थी
या पागल समाज में
जन्मी थी ?
अपने प्रश्न का
उत्तर ढूँढ रहा हूँ
और सोच रहा हूँ-
कल रात भी
कुत्ते भौंके होंगें
वह डरी होगी
पत्थर उठायी होगी
गालियाँ बड़बड़ायी होगी
पत्थर चलाए होंगें
पर, कुत्ते तो कुत्ते होते हैं।