कुत्ते / शमशाद इलाही अंसारी
कुत्ते
शमशान घाट वाले कुत्ते
शव यात्रा का स्वागत करते हैं
दूर से छुपकर देखते हैं
शव लाते हुए हुजूम को
फ़िर देखते हैं एकटक
दाह-संस्कार के सारे उपक्रम,
और जलती हुई चिता।
उनकी शिराओं में बैठ जाती है देर तक
देसी घी वाली सामग्री की सुगंध
मनोयोग से प्रतीक्षा करते
चिता के बुझने तक...
फ़िर उनकी टोली टूट पड़ती है
खोजने के लिए
अधजले शवों के अवशेष
जिन्हे वो खा सकें
अपनी भूख मिटा सकें...
जले-अधजले इन इंसानी माँस के टुकड़ों को
ये दूर-दूर लेकर भागते
दूसरे कुत्तों से बचाकर
ज़्यादा से ज़्यादा खाने की फ़िराक में
लड़ते-फ़ुँफ़्कारते- भौंकते
और कभी एक दूसरे को काटते
लेकिन मुँह में आया दाँव
कभी न छोड़ते।
बड़े निर्भीक हैं ये कुत्ते
अदम्य दुस्साहस से भरे
दूर से ही देख लेते
दरिया में चाण्डाल द्वारा बहाए
मानव शरीर के अधजले टुकडों कों
फ़िर कूद पड़ते पानी में
अपने-अपने हिस्से को दबोचने की जुस्तजू में।
ये कुत्ते बड़े समझदार भी हैं
अब ये पेशेवर हो गए हैं
अपना काम बख़ूबी जानते हैं
इनकी चमड़ी भी बहुत सख़्त है
ये सबल हैं
ये सुदृढ़ हैं
ये अब मरियल कुत्ते नहीं हैं
एकदम बेखौफ़ हैं
ये शक्तिशाली हैं
ये समूहबद्ध हैं,गोलबंद हैं
शवों के लिये इनकी भूख़
अपार है
इनकी पाचन शक्ति बेमिसाल है
इनका पेट कभी नहीं भरता।
अब इनका फ़ैलाव
जंगल के उन दूसरे जानवरों तक पहुँच गया है
जो कर सकते हैं
ताज़ी कब्रों में सुराख़।
ये कुत्ते बडे़ स्याने हैं
जन्मजात सूँघने की शक्ति के माहिर
इन्हें पता चल जाता है
कौन सा सुराख़ ताज़ा है?
कौन सी कब्र नई है?
फ़िर अपने शक्तिशाली पंजों से
खोद डालते हैं
मुर्दे तक पहुँचने का रास्ता, और..
शमशान घाट से
कब्रिस्तान तक
कुत्तों और आदमखोर जानवरों का
अघोषित गठबंधन है
अब इनका सर्वत्र वर्चस्व है
...लेकिन ये कुत्ते
अपना शिकार सिर्फ़
अधजले शवों
और मुर्दों को ही बनाते हैं।
इन कुत्तों की इस दिनचर्या पर
कोई इंसान इसलिये न ही लिखेगा
और न ही पढ़ेगा
कि वह इसे
खुद से बदतर माने.
रचनाकाल : 24.11.2009