भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुदरत का ये करिशमा भी क्या बेमिसाल है / जगदीश रावतानी आनंदम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुदरत का ये करिशमा भी क्या बेमिसाल है
चेहरे सफेद काले लहू सब का लाल है

हिन्दू से हो सके न मुस्लमां की एकता
दूरी बनी रहे ये सियासत की चाल है

धरती पे आदमी ने बसाई है बस्तियां
इंसानियत का आज भी दुनिया में काल है

इक दूसरे के वास्ते पैदा हुए है हम
तेरा जो हाल है वही मेरा भी हाल है

दिन ईद का है आके गले से लगा मुझे
होली पे जैसे तू मुझे मलता गुलाल है