भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुनल-कुनल तोरे दुनू लोचन / भोजपुरी
Kavita Kosh से
कुनल-कुनल तोरे दुनू लोचन, कि हो केस तोरे भँवरा लोभाय।
कि होतोहि मेघिया सँचवा के ढारल, किहो रूच गढ़ले सोनार।।१।।
नाहिं हम रसिया सँचवा के ढारल, नाहिं रूप गढ़ले सोनार।
बाप जाँघे जनमलीं, माई छीर पिअलीं, कि सुरखी दिहलें भगवान।।२।।
पोखरा के आरे-आरे रोवे छैला रसिया, कि मे धिया चलेले ससुराल।।३।।
जनि रोऊ, जनि कानू, तूहूँ छैला रसिया, जनि चित करहू उदास।
सावन-भदउआ के बाबा मोर बोलइहें, राबीं में पूरनि सनेह।।४।।