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कुन्ज भवन सं निक्सल रे रोकल गिर धारी / मैथिली

   ♦   रचनाकार: विद्यापती

कुन्ज भवन सं निक्सल रे रोकल गिर धारी
एक ही नगर बसुँ माधव रे, जनी करु बट्मारी
छोरु कन्हैया मोरा आचँर रे, फाट्त नव सारी
अपजस् होयत जगत भरी रे, करिय उधारी
सँगक सखी सब आगु आयत रे, हम असगर नारी
दामिनी दमक तुलाईल रे, एक रात अन्हारी
भनहिं विद्यापती गावल रे, सुनु गुणवती नारी
हरि जी के सँग कछु डर नही रे, चलु झट झारी ।।