भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुफ्री के घोड़े / स्वप्निल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुफ्री शिमला के पास एक हिल-स्टेशन है जहाँ सैलानी घोड़ों के जरिए पिकनिक-स्पाट तक पहुँचते है ।

कुफ्री में बहुत से घोड़े है
इन घोड़ों ने बहुत लोगो को रोज़गार दे रक्खा है
इनके दम से घरों में जलते हैं चूल्हे
रोटी का होता है बेहतर स्वाद
ये घोड़े नही परिवार के वरिष्ठ नागरिक हैं
वे अपनी पीठ पर सैलानियों को लाद कर
पिकनिक स्पाट तक पहुँचाते हैं ।

हमें दिखाते हैं पहाड़
हमें प्रकृति के समीप ले जाते है
जिन कठिन रास्तों पर चल नही सकती गाड़ियाँ
घोड़े उन रास्तो पर आसानी से चलते है ।
 ००
घोड़े मामूली चीज़ नही इतिहास को बदलने वाले लोग है
जिस दूरी को तय करने में तीन दिन का समय लगता है
घोड़े उस दूरी को एक दिन में तय कर लेते है ।
घोड़े के बगैर हम युद्ध की कल्पना नही कर सकते
महाराणा प्रताप और लक्ष्मीबाई की विजय
इन घोड़ों ने दर्ज कराई है ।

कुफ्री के घोड़े इन्ही घोड़ों के वंशज हैं
ये राजमार्ग पर लद्धड़ दौड़नेवाले घोड़े नही हैं
न ये पूंजी अथवा किसी छल से पैदा हुए हैं ।
ये घोड़े पहाड़ की कोख से पैदा हुए है
इनके श्रम में पसीने की महक है ।
ये घोड़े दुर्गम से दुर्गम रास्तो को अपनी
हिक़मत से पार करते हैं
ये अनथक चलते है
अपने पैरों से बनाते हैं रास्ते
इनके बनाए रास्ते रात में चमकते हैं
जीन और रकाब के बीच फँसे हुए आदमी को
ये घोड़े देते हैं ज़िन्दगी का पता ।